पंचमुखी हनुमान कवच स्तोत्र

सर्व शक्तिशाली पंचमुखी हनुमान कवच स्तोत्र हनुमान जी को समर्पित है। पंचमुखी हनुमान कवच बहुत ही शुभ फलदायी है।

मान्यता है कि पंचमुखी हनुमान कवच का जाप करने से जातक के आसपास एक सुरक्षा आवरण बन जाता है, जो जातक को सभी संकटों से बचाता है।

लेख में-

  • श्री पंचमुखी हनुमान कवच पाठ की विधि।
  • श्री पंचमुखी हनुमान कवच स्तोत्र से लाभ |
  • श्री पंचमुखहनुमत्कवच स्तोत्र एवं अर्थ |

1. पंचमुखी हनुमान कवच पाठ की विधि:

  • पंचमुखी हनुमान कवच स्तोत्र का जाप करने से पहले स्नान कर खुद को पवित्र कर लें।
  • स्नान के बाद पंचमुखी हनुमान जी की तस्वीर को किसी लाल
  • आसन पर स्थापित करें।
  • पंचमुखी हनुमान जी को सिंदूर चढ़ाएं।
  • इसके बाद पंचमुखी हनुमान कवच स्तोत्र का पाठ करें।
  • पाठ करने के बाद हनुमान जी को प्रणाम करते हुए अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगें।

2. पंचमुखी हनुमान कवच स्तोत्र से लाभ:

  1. पंचमुखी हनुमान की आराधना से जातक के भय, रोग-दोष का नाश होता है।
  2. पंचमुखी हनुमान की आराधना करने वाले जातक के जीवन में सुख शांति आता है।
  3. श्री हनुमान कवच से बुराइयों पर जीत मिलती है।
  4. इस कवच स्तोत्र के पाठ से भूत, प्रेत, चांडाल, और बुरी आत्माओं से मुक्ति मिलती है।

3. श्री पंचमुखहनुमत्कवच स्तोत्र एवं अर्थ:

“अथ श्री पंचमुखहनुमत्कवचम् स्तोत्र”

श्री गणेशाय नमः ।

ॐ अस्य श्रीपञ्चमुखहनुमत्कवचमन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषिः।

गायत्री छंदः। पञ्चमुख-विराट् हनुमान् देवता । ह्रीं बीजम् ।

श्रीं शक्तिः । क्रौं कीलकं । तूं कवचं ।

क्रैं अस्त्राय फट्। इति दिग्बन्धः ।

 

अर्थ:

इस पंचमुख हनुमत कवच स्तोत्र के ऋषि ब्रह्मा हैं, छंद गायत्री है, देवता पंचमुख विराट हनुमान जी हैं, ह्रीं बीज मंत्र है, श्रीं शक्ति है, क्रौं कीलक है, कूं कवच है और ‘मैं अस्त्राय फट् ‘ मंत्र दिग्बन्ध हैं।

 

श्री गरुड़ उवाच

अथ ध्यानं प्रवक्ष्यामि शृणु सर्वांगसुंदर,

यत्कृतं देवदेवेन ध्यानं हनुमतः प्रियम् ॥

 

अर्थ:

गरुड़जी ने उद्घोष किया हे सर्वांगसुंदर, देवाधिदेव के द्वारा, उन्हें प्रिय रहने वाला जो हनुमानजी का ध्यान लगाया, मैं उनके नाम का सुमिरण करता हूं। मैं उन मां का ध्यान करता हूं, जिनसे आपकी उत्पत्ति हुई है।

 

पञ्चवक्त्रं महाभीमं त्रिपञ्चनयनैर्युतम्,

बाहुभिर्दशभिर्युक्तं सर्वकामार्थसिद्धिदम्।।

 

अर्थ:

श्री हनुमान जी पांच मुख वाले, अत्यंत विशालकाय, पंद्रह नेत्र (त्रि-पञ्च-नयन) धारी हैं, श्री हनुमान जी दस हाथों वाले हैं, वे सकल काम एवं अर्थ इन पुरुषार्थों की सिद्धि करने वाले देव हैं। भाव है की श्री हनुमान जी पांच मुख वाले, पंद्रह नेत्र धारी और दस हाथों वाले हैं जो सभी कार्यों को सिद्ध करते हैं।

 

पूर्वं तु वानरं वक्त्रं कोटिसूर्यसमप्रभ,

दंष्ट्राकराल वदनं भ्रुकुटिकुटिलेक्षणम् ॥

 

अर्थ:

श्री हनुमान जी का मुख सदा ही पर्व दिशा की और रहता है, पूर्व मुखी हैं। श्री हनुमान जी जो वानर मुखी हैं, उनका तेज करोड़ों सूर्य के तुल्य है। श्री हनुमान जी के मुख पर विशाल दाढ़ी है और इनकी भ्रकुटी टेढ़ी हैं। ऐसे दांत वाले श्री हनुमान जी हैं।

 

अस्यैव दक्षिणं वक्त्रं नारसिंहं महाद्भुतम्,

अत्युग्र तेज वपुष् भीषणं भय नाशनम् ॥

 

अर्थ:

श्री हनुमान जी बदन दक्षिण दिशा में देखने वाला है और इनका मुख सिंह मुखी है जो अत्यंत ही दिव्य और अद्भुत है। श्री हनुमान जी का मुख भय को समाप्त करने वाला है। श्री हनुमान जी का मुख शत्रुओं के लिए भय पैदा करने वाला है।

 

पश्चिमं गारुडं वक्त्रं वक्रतुण्डं महाबलम्,

सर्व नाग प्रशमनं विषभूतादिकृन्तनम्॥

 

अर्थ:

श्री हनुमान जी का जो मुख पश्चिम दिशा में देखने वाला है वह गरुमुख है और वह मुख अत्यंत ही बलवान और सामर्थ्यशाली है। विष और भूत

को (समस्त बाधाओं को दूर करने वाला) दूर करने वाला गरुडानन है। साँपों और भूतों को दूर करने वाले हैं।

 

उत्तरं सौकरं वक्त्रं कृष्णं दीप्तं नभोपमम् ।

पातालसिंहवेतालज्वररोगादिकृन्तनम्॥

 

अर्थः

श्री हनुमान जी का उत्तर दिशा में देखने वाला मुख वराह मुख (आगे की और मुख निकला हुआ) है। वराह मुख श्री हनुमान जी कृष्ण वर्ण के हैं और उनकी तुलना आकाश से की जा सकती है। श्री हनुमान जी पाताल वासियों के प्रमुख बेताल और भूगोल के कष्ट हरने वाले हैं। बीमारियों और ज्वर को समूल नष्ट करने वाले ऐसे वराह मुख हनुमान जी हैं।

 

ऊर्ध्वं हयाननं घोरं दानवान्तकरं परम् ।

येन वक्त्रेण विप्रेन्द्र तारकाख्यं महासुरम् ॥

जघान शरणं तत् स्यात् सर्व शत्रु हरं परम् ।

ध्यात्वा पञ्चमुखं रुद्रं हनुमन्तं दयानिधिम् ॥

 

अर्थ:

ऊर्ध्व दिशा मुखी हनुमान जी हैं जो दानवों का नाश करने वाले हैं। हे हनुमान जी (वीसपेंद्र) जी आप गायत्री के उपासक हैं और आप असुरों का नाश करने वाले हैं। हमें ऐसे पंचमुखी हनुमान जी की शरण में रहना चाहिए। श्री हनुमान जी रूद्र और दयानिधि हैं इनकी शरण में हमें रहना चाहिए। श्री हनुमान जी भक्तों के लिए दयालु और शत्रुओं का नाश करने वाले हैं।

 

खड्गं त्रिशूलं खट्वाङ्गं पाशमङ्कुशपर्वतम्।

मुष्टिं कौमोदकीं वृक्षं धारयन्तं कमण्डलुं ॥

भिन्दिपालं ज्ञानमुद्रां दशभिर्मुनिपुङ्गवम्।

एतान्यायुधजालानि धारयन्तं भजाम्यहम् ॥

 

अर्थः

श्री पंचमुख हनुमान जी हाथों में तलवार, त्रिशूल और खड्ग धारी हैं। श्री हनुमान जी के हाथों में तलवार, त्रिशूल, खट्वाङ्ग नाम का आयुध, पाश, अंकुश, पर्वत है और मुष्टि नाम का आयुध, कौमोदकी गदा, वृक्ष और कमंडलु पंचमुख हनुमानजी ने धारण कर रखे हैं। श्री हनुमान जी ने भिन्दिपाल (लोहे धातु से बना अस्त्र) अस्त्र को धारण कर रखा है। श्री हनुमान जी का दसवां शस्त्र ज्ञान मुद्रा है।

 

प्रेतासनोपविष्टं तं सर्वाभरणभूषितम् ।

दिव्य माल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानुलेपनम् ॥

 

अर्थ:

श्री हनुमान जी प्रेतासन पर बैठे हैं और उन्होंने समस्त आभूषण धारण कर रखे हैं, श्री हनुमान जी ने दिव्य मालाएं ग्रहण कर रखी हैं जो आकाश के समान हैं और यह दिव्य गंध का लेप समस्त बाधाओं को दूर करने वाला है।

 

सर्वाश्चर्यमयं देवं हनुमद्विश्वतो मुखम्,

पञ्चास्यमच्युतमनेकविचित्रवर्णवक्त्रं,

शशाङ्कशिखरं कपिराजवर्यम् ।

पीताम्बरादिमुकुटैरुपशोभिताङ्गं,

पिङ्गाक्षमाद्यमनिशं मनसा स्मरामि ॥

 

अर्थ:

श्री हनुमान जी समस्त आश्चर्यों से भरे हुए हैं और श्री हनुमान जी जिन्होंने विश्व में सर्वत्र जिन्होंने मुख किया है, ऐसे ये पंचमुख-हनुमानजी हैं और ये पांच मुख रहने वाले (पञ्चास्य), अच्युत और अनेक अद्भुत वर्णयुक्त (रंगयुक्त) मुख रहने वाले हैं। श्री हनुमान जी ने चन्द्रमा को अपने शीश पर धारण कर रखा है और सभी कपियों में सर्वश्रेष्ठ रहने वाले ऐसे ये हनुमानजी हैं। श्री हनुमान जी पीतांबर, मुकुट आदि से सुशोभित हैं। श्री हनुमान जी पिङ्गाक्ष, आद्यम् और अनिशं हैं। ऐसे इन पंचमुख हनुमानजी का हम मनःपूर्वक स्मरण करते हैं।

 

मर्कटेशं महोत्साहं सर्व शत्रु हरं परं ।

शत्रु संहर मां रक्ष श्रीमन्नापदमुद्धर ||

 

अर्थ:

श्री हनुमान जी वानरों में श्रेष्ठ हैं, प्रचंड हैं और बहुत उत्साही भी हैं। श्री हनुमान जी शत्रुओं का नाश करने वाले हैं और में रक्षा कीजिए मेरा उद्धार कीजिये वानर श्रेष्ठ, प्रचंड उत्साही हनुमान जी सारे शत्रुओं का निःपात करते हैं। हे श्रीमन् पंचमुख हनुमानजी, मेरे शत्रुओं का संहार कीजिए। संकट में से मेरा उद्धार कीजिए |

 

ॐ  हरिमर्कट मर्कट मंत्र मिदं परि लिख्यति लिख्यति वामतले।

यदि नश्यति नश्यति शत्रुकुलं यदि मुञ्चति मुञ्चति वामलता॥

ॐ  हरि मर्कटाय स्वाहा ॥

 

अर्थ:

महाप्राण हनुमान जी के बाये पैर के तलवे के नीचे ‘ॐ हरि मर्कटाय स्वाहा’ लिखने से उसके केवल शत्रु का ही नहीं बल्कि शत्रु कुल का नाश हो जायेगा। श्री हनुमान जी वामलता को यानी दुरितता को, तिमिर प्रवृत्ति को हनुमानजी समूल नष्ट कर देते हैं और ऐसे एक बदन को स्वाहा कहकर नमस्कार किया है।

 

॥ ॐ  नमो भगवते पंचवदनाय पूर्वकपिमुखाय

सकलशत्रुसंहारकाय स्वाहा ॥

 

अर्थ:

सकल शत्रुओं का संहार करने वाले पूर्व मुख को, कपिमुख को, भगवान श्री पंचमुख हनुमानजी को मेरा नमन है।

 

॥ ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय दक्षिणमुखाय करालवदनाय

नरसिंहाय सकलभूतप्रमथनाय स्वाहा ॥

 

अर्थ:

दुष्प्रवृत्तियों के प्रति भयानक मुख रहने वाले (करालवदनाय), सारे भूतों का उच्छेद करने वाले, दक्षिण मुख को, नरसिंह मुख को, भगवान श्री पंचमुख हनुमानजी को मेरा नमस्कार है।

 

॥ ॐ  नमो भगवते पंचवदनाय पश्चिममुखाय गरुडाननाय

सकलविषहराय स्वाहा ॥

 

अर्थ:

हर प्रकार के विष का हरण करने वाले पश्चिममुखी को, गरुड़ मुख को, भगवान श्री पंचमुख हनुमानजी को मेरा नमस्कार है।

 

॥ॐ  नमो भगवते पंचवदनाय उत्तरमुखाय आदिवराहाय

सकलसंपत्कराय स्वाहा ॥

 

अर्थ:

सकल संपदाएं प्रदान करने वाले उत्तरमुख को, आदिवराहमुख को, भगवान श्री पंचमुख हनुमान जी को मेरा नमस्कार है।

 

॥ॐ  नमो भगवते पंचवदनाय ऊर्ध्वमुखाय हयग्रीवाय

सकलजनवशकराय स्वाहा ॥

 

अर्थः

सकल जनों को वश में करने वाले, ऊर्ध्वमुख को, अश्वमुख को, भगवान श्री पंचमुख-हनुमानजी को मेरा नमस्कार है।

 

॥ ॐ  श्री पंचमुख हनुमंताय आंजनेयाय नमो नमः ॥

 

अर्थ:

अंजनी पुत्र श्री पञ्चमुख-हनुमान जी को पुन: मेरा नमस्कार है।

हिंदू धर्म में मंगलवार का दिन भगवान हनुमान को समर्पित है। शनिवार को भी हनुमान जी की आराधना का विशेष महत्व होता है। शनिवार को हनुमान जी की आराधना से भक्त को शनिदेव के दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है। इस दिन भगवान हनुमान की उपासना करने से जातक को विशेष लाभ मिलता है।

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