बजरंग बाण

Bajrang Baan

॥ दोहा ॥ निश्चय प्रेम प्रतीत ते, विनय करें सनमान । तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान ॥ …

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श्री हनुमान चालीसा

Shri Hanuman Chalisa

श्री हनुमान चालीसा ॥ दोहा ॥ श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि । बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो …

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अध्याय 18: मोक्षसंन्यासयोग

अथाष्टादशोऽध्यायः- मोक्षसंन्यासयोग

मोक्षसंन्यासयोग  मुक्ति और संन्यास का योग अर्जुन उवाच सन्न्यासस्य महाबाहो तत्त्वमिच्छामि वेदितुम्‌ । त्यागस्य च हृषीकेश पृथक्केशिनिषूदन ৷৷18.1৷৷ arjuna uvāca …

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अध्याय 17: श्रद्धात्रयविभागयोग

अथ सप्तदशोऽध्यायः- श्रद्धात्रयविभागयोग

श्रद्धात्रयविभागयोग  श्रद्धा के तीन प्रकारों का विश्लेषण अर्जुन उवाच ये शास्त्रविधिमुत्सृज्य यजन्ते श्रद्धयान्विताः। तेषां निष्ठा तु का कृष्ण सत्त्वमाहो रजस्तमः৷৷17.1৷৷ …

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अध्याय 16: दैवासुरसम्पद्विभागयोग

अध्याय सोलहवाँ दैवासुरसम्पद्विभागयोग

दैवासुरसम्पद्विभागयोग  दैवी और अदैवी स्वभाव के विभाजन का योग श्रीभगवानुवाच अभयं सत्त्वसंशुद्धिर्ज्ञानयोगव्यवस्थितिः। दानं दमश्च यज्ञश्च स्वाध्यायस्तप आर्जवम्॥16.1॥ sri bhagavanuvaca abhayan …

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अध्याय 15: पुरुषोत्तमयोग

अध्याय पंद्रहवाँ पुरुषोत्तमयोग

पुरुषोत्तमयोग  परमात्मा की अनंत शक्तियों का वर्णन श्रीभगवानुवाच ऊर्ध्वमूलमधः शाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम् । छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित् ৷৷15.1৷৷ …

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अध्याय 14: गुणत्रयविभागयोग

सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय चौदह

गुणत्रयविभागयोग  तामसिक, राजसिक, सात्विक गुणों की चर्चा श्रीभगवानुवाच परं भूयः प्रवक्ष्यामि ज्ञानानं मानमुत्तमम् । यज्ज्ञात्वा मुनयः सर्वे परां सिद्धिमितो गताः …

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अध्याय 13: क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभागयोग

सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय तेरह

क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभागयोग शरीर और आत्मा का संबंध श्रीभगवानुवाच क्षेत्रज्ञं चापि मां विद्धि सर्वक्षेत्रेषु भारत। क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोर्ज्ञानं यत्तज्ज्ञानं मतं मम॥ ksetrajnan capi man …

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अध्याय 12: भक्तियोग

सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय बारह

भक्तियोग  भक्ति के विभिन्न प्रकार और उनका महत्व अर्जुन उवाच एवं सततयुक्ता ये भक्तास्त्वां पर्युपासते । ये चाप्यक्षरमव्यक्तं तेषां के …

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अध्याय 11: विश्वरूपदर्शन योग

सम्पूर्ण श्रीमद्‍भगवद्‍गीता अध्याय ग्यारह

विश्वरूपदर्शन योग  भगवान कृष्ण का विश्वरूपदर्शन अर्जुन उवाच मदनुग्रहाय परमं गुह्यमध्यात्मसञ्ज्ञितम् । यत्त्वयोक्तं वचस्तेन मोहोऽयं विगतो मम ॥ arjuna uvaca …

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